मौलाना वहीद्दुदीन ख़ान

                                        मौलाना वहीद्दुदीन ख़ान

इस्लाम धर्म के विशेषज्ञ मौलाना वहीउद्दीन का जन्म वर्ष 1925, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में हुआ था। मदरसे में अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले मौलाना ने आत्म शिक्षण के जरिए आधुनिक ज्ञान को प्राप्त किया। जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी की किताब, वर्ल्ड 500 मोस्ट इंफ्लूएंशियल मुस्लिम्स में मौलाना वहीउद्दीन खान को “दुनिया के लिए इस्लाम का आध्यात्मिक राजदूत करार दिया था”। इस किताब के अनुसार मौलाना का दृष्टिकोण मुसलमान और गैर-मुसलमान, दोनों के लिए ही लोकप्रिय है।



एक नया भविष्य

ब्रह्मांड में सभी चीजें एक-दूसरे पर आश्रित हैं। जो चीजें एक-दूसरे पर आश्रित हैं, वो एक-दूसरे से इतने करीबी रूप से जुड़े हैं कि अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए उन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता होती है। ब्रह्मांड संचालन का यह अन्योन्याश्रय नियम आमतौर पर मानव समाज पर भी लागू होता है। इसका अर्थ यह है कि मानवों की दुनिया में महान चीजें तभी हो सकती हैं जब कोई व्यक्ति किसी के क्षेत्र में दखल दिए बिना अपनी भूमिका निभाए। वर्तमान में हम हर जगह मुस्लिम उग्रवाद को देखते हैं। मुस्लिम देशों में भी कोई अपवाद नहीं है। जब मुस्लिम देशों में मुस्लिम कानून और प्रशासन है तो वहां भी उग्रवाद देखने को क्यों मिलता है? वो इसलिये, क्योंकि इन देशों के मुस्लिम सार्वभौमिक सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे हैं।

इस बात की स्पष्टता के लिए मैं एक मुस्लिम दुनिया का उदाहरण देना चाहूंगा: 1958 में जब जनरल अयुब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे तो उस समय सैयद अबुल आला मौदूदी और उनकी पार्टी ‘पाकिस्तान के इस्लामीकरण’ के लिए सक्रिय थी। इस्लामी क्रांति के अग्रणी और पाकिस्तान के जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक के बारे में सैयद वली रजा नस्त्र लिखते हैं, “1962 में लाहौर की एक यात्रा के दौरान जनरल अयुब ने राज्यपाल की हवेली में मौदूदी को आमंत्रित किया और उन्हें यह सलाह दी कि वो राजनीति राजनेताओं के लिए छोड़ दें और इसके बदले खुद को धार्मिक अध्ययनों के लिए समर्पित कर दें। प्रोत्साहन के लिए उन्होंने मौदूदी को भावलपुर इस्लामी विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष के पद का प्रस्ताव दिया। लेकिन वो मौदूदी के मन को संतुष्ट नहीं कर सके। उन्होंने प्रस्ताव और वकील दोनों को खारिज कर दिया।” अयुब खान का यह प्रस्ताव सैयद अबुल आला मौदूदी के लिए सुनहरा मौका था। इस प्रस्ताव को स्वीकार कर वो पाकिस्तान की पूरी शिक्षा को व्यवस्थित करने में सक्षम हो पाते और नई पीढ़ी को ऐसी मानसिकता के लिए तैयार कर पाते जो पाकिस्तान के सुधार में काफी सहायक होती। लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और एक महान अवसर से चूक गये।



मुस्लिम समुदाय जिस सबसे बड़ी परेशानी का सामना कर रही है, वो ये कि मुस्लिम समुदाय अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा की दौड़ में पीछे छूट चुकी है। इस पिछड़ेपन के जिम्मेदार पूरी तरह से आज के मुस्लिम नेता हैं जो मौकों को पहचानने में और समझदारी के साथ उन मौकों का लाभ उठाने में पूरी तरह से नाकाम रहे हैं। वर्तमान युग में मुस्लिम हिंसा के क़ृत्यों में क्यों शामिल हैं? इसका केवल एक कारण है और वो है आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिमों का पिछड़ापन। शैक्षिक पिछड़ेपन के कारण वो आधुनिक युग की प्रक़ृति की खोज में विफल रहे। आधुनिक युग इस्लाम के लिए एक सहायक कारक था लेकिन उनके शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण मुस्लिम इस्लाम विरोधि कार्यों में लिप्त हैं। यही बुनियादी कारण है कि मुस्लिम अपने पुनरुद्धार के लिए शांतिपूर्ण योजना बनाने में नाकाम रहे और मूर्खतापूर्ण ढ़ंग से हिंसा के जाल में फंस गये हैं। जब उन्हें पूरी तरह इस सच का एहसास होगा, केवल तभी मुस्लिमों के लिए एक नया भविष्य बन सकता है


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Akhilesh Pal

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