आदिगुरु शिव और अन्य गुरुओं की शिक्षाओं में क्या अंतर है?

                         आदिगुरु शिव और अन्य गुरुओं की शिक्षाओं में क्या अंतर है?

जेन इस ब्लॉग में सद्‌गुरु एक जिज्ञासु के सवाल का जवाब देते हुए बता रहे हैं कि कैसे दूसरे गुरुओ जैसे जीसस, बुद्ध या फिर ज़ेन गुरुओं ने अपनी शिक्षाओं में शिव की चर्चा क्यों नहीं की? आइए जानते हैं सद्‌गुरु का जवाब!



प्रश्नकर्ता : सद्‌गुरु आप भगवान शिव को बहुत महत्व देते हैं ! तो फिर दूसरे गुरुओ जैसे जीसस, बुद्ध या फिर ज़ेन गुरुओं ने अपनी शिक्षाओं में शिव की चर्चा क्यों नहीं की है?

सद्‌गुरु : इस प्रकार के सवाल और विचार एक ऐसी मानसिकता से आते हैं, जो संगठित धर्मो से पैदा हुई है! शिव का किसी और से मुकाबला करना हमारा उद्देश्य नहीं है... क्योंकि शिव में वे सभी आयाम मौजूद हैं, जिनकी आप बात कर रहे हैं। कुछ लोगों ने केवल एक पहलु ढूँढा, और वे उस पर बात करके लोकप्रिय हो गए! मैं उनके महत्व को कम नहीं बता रहा; वे सभी शानदार लोग हैं जिन्होंने मानवता के लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन मैं कह रहा हूँ - बोध या अनुभूति के हिसाब से, उनके जैसा कोई भी नहीं हुआ। और मैं सिर्फ बोध को महत्व देता हूँ, और आपको भी यही करना चाहिए। बाकी की बनाई जा सकती हैं, वे चीज़ें तो बस ताम झाम है।

खुद शिव से बड़ा ज़ेन गुरु कौन है?

तो आप ज़ेन के बारे में बात कर रहे हैं। खुद शिव से बड़ा ज़ेन गुरु कौन हो सकता है? कि कोई सामने आया - और उसके अपने बेटे को समझ नहीं आया, कि वो कौन है। आपने गुइटी के बारे में सुना होगा, ज़ेन गुरु?

गुइटी हमेशा एक ऊँगली दिखाया करते थे। वह बात करते हुए भी ऊँगली दिखाते थे, लोग उन्हें देखकर सोचते, “ये मुझे ऊँगली क्यों दिखा रहे हैं?”, वास्तव में गुइटी कहना चाहते थे कि सब कुछ एक है और यही उनकी शिक्षा थी! कि बाकी मैं जो भी कह रहा हूँ वो महत्वपूर्ण नहीं है! तो वहाँ एक छोटा लड़का था, क्योंकि बौद्ध और ज़ेन मठों में चार पांच साल के बच्चे भी सन्यासी बन जाते हैं। तो ये छोटा बच्चा मठ में बड़ा हो रहा था, और गुइटी को देखकर वैसी ही हरकतें करने लगा। तो वो बच्चा ऊँगली दिखाते हुए घूमता रहता था, अगर कोई कुछ कहता तब भी। गुइटी ने भी यह सब देखा! उन्होंने उसके सोलह साल के होने तक इंतज़ार किया। एक दिन उन्होंने बच्चे को बुलाया और ऊँगली दिखाई उस बालक ने भी आदत के अनुसार वैसा ही किया क्योंकि वो हर जगह ये ही करता था! तब गुइटी ने एक चाकू निकाला और लड़के की ऊँगली काट दी और कहते हैं कि लड़के को आत्मज्ञान प्राप्त हो गया। उसे अचानक ये बात समझ आ गई कि ये इशारा एक के बारे में नहीं है, शून्य के बारे में है।

त्रिशूल के तीन आयाम

बहुत समय पहले शिव इससे भी आगे चले गए थे। शिव कहीं से वापस आए थे, वे हमेशा अपने पास त्रिशूल रखते थे - त्रिशूल के तीन सिरे होते हैं। वे हमेशा अपने पास त्रिशूल रखते थे - लोगों को ये बताने के लिए कि तीन आयाम हैं - आप या आपके होने का तरीका, वो जो आपको पता है और वो जो आपको नहीं पता, और जो आपको नहीं पता उसका महत्व सबसे ज्यादा है, आपकी जानकारी का महत्व नहीं है।

शिव और गणेश

एक दिन शिव काफी लम्बे अंतराल के बाद कहीं से वापस लौटे। उन्होंने अपने पुत्र को पहले कभी नहीं देखा था, जो अब दस-ग्यारह साल का हो गया था। जब शिव लौटे तो इस छोटे बच्चे के हाथ में एक छोटा त्रिशूल था, जिससे वो शिव को अन्दर जाने से रोक रहा था। शिव ने बच्चे को देखा और उसका सिर काट दिया, उसका त्रिशूल नहीं छीना। (हँसते हैं) और फिर थोडा ड्रामा हुआ और फिर उन्होंने उस बच्चे के शरीर पर एक गण का सिर लगा दिया, और वो एक बुद्धिमानी बालक बन गया। भारत में आज भी अगर लोग शिक्षा की शुरुआत करते हैं तो सबसे पहले वे इस बालक की पूजा करते हैं। गण आज गज बन गया है – वैसे तो वो गण का सिर था, लेकिन उसे गणेश की जगह गजेश बना दिया गया है। लोगों ने इसको थोडा बदल कर एक हाथी का सिर बना दिया है पर वो बुद्धि और प्रतिभा का रूप बन गया! कहते हैं कि ऐसा कुछ भी नहीं जो उन्हें न पता हो।

तो ज़ेन यहीं से शुरू हुआ था। तो अप दुनिया में जिस बारे में भी बात कर सकते हैं, वो उनके जीवन में दिख जाएगा। वे बहुत जटिल और पूर्ण हैं, और उन्होंने कोई शिक्षा नहीं दी, उन्होंने सिर्फ तरीके बताये। ये सबसे महत्वपूर्ण बात है। औरों के पास शिक्षा थी। कितनी उँगलियाँ काटी जा सकती हैं? क्या आप ऐसे किसी तरीके को अपना सकते हैं? क्या आप गुइटी के ऊँगली काटने का तरीका सभी पर लागू कर सकते हैं? एक बालक की ऊँगली काट दी गयी और उसे आत्म ज्ञान मिल गया। अगर आप ज्यादा उंगलियाँ काटेंगे, तो आपके पास केवल अपंग मनुष्य होंगे, इससे ज्यादा कुछ नहीं होगा।

शिव ने कोई शिक्षा नहीं दी

तो शिव ने कोई शिक्षा नहीं दी। सिर्फ तरीके बाताये। और ये तरीके पूरी तरह से वैज्ञानिक है। शिव ने एक सौ आठ रास्ते बताये और उसमें छ: और जोड़ कर कहा कि एक सौ बारह तरीके हैं। एक सौ बारह इसलिए क्यूंकि हमारे शरीर में एक सौ चौदह चक्र हैं, उनमें से दो शरीर के बाहर मौजूद हैं! शिव ने कहा कि “ वे दो चक्र सिर्फ उन लोगों के लिए हैं जो शरीर से परे हैं!” इंसानों के लिए केवल एक सौ बारह रास्ते हैं! और उन्होंने इस जीवन को बनाने वाले उन एक सौ बारह आयामों का इस्तेमाल करने के स्पष्ट तरीके बताये, और ये बताया कि कैसे हर एक तरीके का इस्तेमाल करके आत्मज्ञान पाया जा सकता है। एक खूबसूरत कहानी है!



पार्वती की खोज

जब शिव सात ऋषियों को जीवन की बनावट के बारे में सिखा रहे थे, तो इस दीक्षा का एक गवाह वहाँ मौजूद था। वो गवाह आनंदतीर्थ की तरह नहीं था। वे पार्वती थीं। वे आत्मज्ञान प्राप्त कर चुकी थीं। शिव ने पार्वती को बहुत ही अपनेपन के माहौल में आत्मज्ञान तक पहुंचाया था। पर जैसे ही शिव सात ऋषियों के साथ बैठे वे खोज के बिलकुल अलग आयाम में उतर गए। पार्वती के लिए ये काफी रोचक था, कि जो अनुभव उन्हें इतनी आसानी से मिला, वो इतनी जटिल प्रक्रिया है। तो शिव ने अलग-अलग आयामों के बारे में समझाते हुए कहा – मनुष्य एक सौ बारह तरीकों से आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है। पार्वती ने एक महिला, एक आत्मज्ञानी और सबसे बढ़कर उनकी पत्नी होने के नाते कहा – एक सौ बारह ही क्यों, और भी तरीके होंगे। शिव जीवन की बनावट के बारे में समझा रहे थे, वे जीवन की खोज कर रहे थे।

वे कोई शिक्षा या फिलोसोफी नहीं दे रहे थे। तो इस खोज के बीच उन्हें लगा कि शान्ति भंग हो रही है। शिव ने इशारे से पारवती को कहा – “श्श् बैठ जाओ। सिर्फ एक सौ बारह तरीके हैं। क्योंकि वे कुछ सिखा रहे थे, और कोई निजी बात शुरू कर रहा था, एक मनमानी बात। तो वे बोले – “बस एक सौ बारह तरीके हैं”। वो बोलीं – “मैं और भी ढूंढूंगी”। शिव ने कहा- “तुम जा कर ढूंढो।”

फिर पार्वती वहाँ से चली गयीं। वे पहली ही आत्मज्ञानी थीं, और आत्म ज्ञान पाने के अलग-अलग तरीके खोजने लगीं। कहते हैं काफी सालों की साधना के बाद वे वापस आयीं। शिव तब भी सप्त ऋषियों से बात कर रहे थे। पत्नी होने का नाते वे उनके पास बैठ सकती थीं, पर उनसे एक सीढ़ी नीचे बैठीं। वे हार गयीं थीं, और वे चाहती थीं कि सिर्फ शिव को पता चले, न कि सप्त ऋषियों को। वो बस आयीं और अपनी हार मानने के लिए थोड़ा नीचे बैठ गयीं। वे नहीं चाहतीं थीं, कि दूसरों को पता चले, पर वे चाहतीं थीं कि शिव को पता चले।

एक सौ बारह तरीके हैं!

तो एक सौ बारह तरीके हैं! शिव जीवन की बनावट के बारे में बात कर रहे हैं – कोई शिक्षा, कोई फिलोसोफी या सामाजिक महत्व नहीं – बस विज्ञान। हम सामाजिक महत्व जोड़ देते हैं, नहीं तो ये कुछ ज्यादा वैज्ञानिक हो जाएगा। इस विज्ञान से अलग-अलग गुरु तकनीक बनाते हैं। उन्होंने तकनीकें नहीं दीं थी, उन्होंने सिर्फ विज्ञान दिया था। जिन तकनीकों का आप आज इस्तेमाल कर रहे है, चाहे वो स्मार्टफोन हो, कंप्यूटर हो या कोई और गैजेट हो – सभी के पीछे एक विज्ञान है। आपको उस विज्ञानं से मतलब नहीं है। आप बस तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अगर किसी ने विज्ञान न समझा होता, तो आपके पास तकनीक नहीं होती।

सरल सॉफ्टवेर बनाने में जटिल एल्गोरिथम्स का इस्तेमाल होता है। कभी कभी आपकी ईमेल अजीब सी भाषा में दिखने लगती है, क्या आपने देखा है? आपको लगता है – “क्या मैंने ये टाइप किया?” आपके लिए ये बेमतलब है, लेकिन किसी और के लिए इसका मतलब है – इसी वजह से काम ये काम करती है।

यहाँ हम केवल ध्वनि तरंग यानि साउंड वेव्स का इस्तेमाल कर रहे हैं ! जब मैं बोलता हूँ, तब ये एम्प्लिफाईर्स मेरी आवाज को बढ़ा देते हैं और ये ध्वनि तरंगों के रूप में फैलती है। मान लीजिये यदि मैं आपसे फ़ोन पर बात कर रहा हूँ तो मेरी बात ध्वनि तरंग नहीं बनेगी ,यह इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव बन जाएगी, और वहाँ पहुंचकर फिर ध्वनि तरंग बन जाएगी। तो फोन पर बात करते समय, ये यहाँ से बैंगलोर तक ध्वनि तरंग के रूप में नहीं जाती, ये कुछ और बन जाती है। अगर आप उसे सुन सकते, या उसे महसूस करें – तो ये बिलकुल अलग होंगी। पर कोई उपकरण इन्हें फिर से ध्वनि में बदल देता है, जिन्हें आप समझ पाते हैं।

तो जो शिव ने कहा वो बस शुद्ध विज्ञान है। उन्होंने तकनीक की बात नहीं की। उन्होंने ये काम सप्त ऋषियों पर ही छोड़ दिया, कि वे किसी ख़ास दिन अपने सामने बैठे लोगों के लायक तकनीक बना लें। अपनी ज़रुरत के आधार पर हम गैजेट बना लेते हैं, लेकिन विज्ञान एक ही होता है। है न? विज्ञान बिलकुल नहीं बदलता। तो मैं हमेशा शिव की बात करता हूँ, क्योंकि विज्ञान महत्वपूर्ण है। तकनीक महत्वपूर्ण नहीं है, विज्ञान महत्वपूर्ण है। तकनीक बनाई जाती है, तकनीक हम खुद बनाते हैं।

एक मूल विज्ञान है, इसीलिए हम कुछ बना लेते हैं। जिन उपकरणों का आज महत्व है, शायद कल उनका महत्व न रहे। ऐसा हो चुका है, है न? कितने गैजेट जो हमें बहुत उपयोगी लगते थे, वो अब उपयोगी नहीं हैं क्योंकि नये गैजेट आ गए – लेकिन विज्ञान नहीं बदला। तो हम कैसे गैजेट बनाते हैं, ये इससे तय होता है कि हम किसके लिए बना रहे हैं, और इस समय किस चीज़ की जरुरत है।


तो इस संदर्भ में, जिन अन्य गुरुओं के नाम आप ले रहे हैं और आदियोगी में बहुत बड़ा अंतर है। वे सभी तकनीकी लोग हैं, उन्होंने इसका एक आयाम समझा और उस पल उनके सामने बैठे लोगों के लिए एक ख़ास तकनीक बना दी। वो लोगों के काम आई, और उस पल वही बात जरुरी थी। पर हम आदियोगी को वैज्ञानिक आधार की तरह देखते हैं। आज ये महत्वपूर्ण है। आज जब मानवता बहुत से कारणों से ऐसी स्थिति में पहुँच गयी है - ये जरुरी है, कि इसके मूल विज्ञान को मजबूत किया जाए।


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Akhilesh Pal

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